Friday 15 October 2021

दारा बांधता तोरण

दारा बांधता तोरण घर नाचले नाचले
आज येणार अंगणी सोनचाफ्याची पाऊले

भिंती रंगल्या स्वप्नांनी झाल्या गजांच्या कर्दळी
दार नटून उभेच, नाही मिटायाची बोली

सूर्यकिरण म्हणाले घालु दारात रांगोळी
शिंपू पायांवरी दंव म्हणे वरून पागोळी

भरू ओंजळ फुलांनी बाग म्हणे बहरून
देईन मी आशीर्वाद केळ म्हणाली हासून

येरझारा घाली वारा गंध मोतिया घेउनी
सोनचाफ्याची पाऊले आज येतील अंगणी
https://dc.kavyasaanj.com/2021/10/dara-bandhata-toran.html


कवयित्री - इंदिरा संत 





Thursday 26 August 2021

घननीळ सागराचा घननाद

घननीळ सागराचा घननाद येतो कानी
घुमती दिशा दिशात लहरीमधील गाणी…

चौफेर सूर्य ज्वाला वारा अबोल शांत
कोठे समुद्र पक्षी गगनी फिरे निवांत…

आकाश तेज भारे माडांवरी स्थिरावे
भटकी चुकार होडी लाटात संथ धावे…

वाळूत स्तब्ध झाला रेखाकृती किनारा
जवळी असून पाणी अतृप्त तो बिचारा…

जलधीबरोबरीचे आभासमान नाते
त्याची न त्यास धरती संकेत फक्त खोटे…

सांनिध्य सागराचे आकाश पांघराया
परी साथ ना कोणाची अस्तित्व सावराया…

https://dc.kavyasaanj.com/2021/08/ghanneel-sagracha-ghananaad.html

कवी - विद्याधर सीताराम करंदीकर





Saturday 21 August 2021

पवित्र रक्षा-बंधन

कच्चे धागे में बंधा,
भाई-बहन का अटूट प्यार,
विश्व को हमारी सांस्कृतिक
परंपरा का अमूल्य उपहार--
रक्षा-बंधन धागों का त्यौहार !

परमेश्वर से प्रेम, उपदेशक से प्रेम,
माता-पिता से प्रेम, बच्चों से प्रेम,
देश-प्रेम, कला-प्रेम सभी सुना--
भाई-बहन के प्रेम के बखान में,
कवि क्यों रहा अनमना ?

धन्य हमारे पूर्वज,
इसके महत्व को समझा,
इस त्यौहार को चुना।
आवश्यक नहीं कि
वह सगा हो अपना,
जिसने कलाई पर बंधवाई,
वह स्वत: भाई बना।
भाई देता रक्षा का वचन,
बहन करती मंगल-कामना।

https://dc.kavyasaanj.com/2021/08/rakshabandhan-hindi-poem.html

कवी -- गोपाल सिन्हा





Thursday 12 August 2021

नन्हा मुन्ना राही हूँ, देश का सिपाही हूँ

नन्हा मुन्ना राही हूँ, देश का सिपाही हूँ
बोलो मेरे संग
जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद

रस्ते में चलूंगा न डर-डर के
चाहे मुझे जीना पड़े मर-मर के
मंज़िल से पहले ना लूंगा कहीं दम
आगे ही आगे बढ़ाऊंगा कदम
दाहिने-बाए, दाहिने-बाए, थम
नन्हा मुन्ना राही ...

धूप में पसीना मैं बहाऊंगा जहाँ
हरे-हरे खेत लहरायेंगे वहाँ
धरती पे फ़ाके न पायेंगे जनम
आगे ही आगे बढ़ाऊंगा कदम

नया है ज़माना मेरी नई है डगर
देश को बनाउंगा मशीनों का नगर
भारत किसी से रहेगा नहीं कम
आगे ही आगे बढ़ाऊंगा कदम

बड़ा हो के देश का सहारा बनूंगा
दुनिया की आँखों का तारा बनूंगा
रखूँगा ऊँचा तिरंगा परचम
आगे ही आगे बढ़ाऊंगा कदम

शांति की नगरी है मेरा ये वतन
सबको सिखाऊंगा मैं प्यार का चलन
दुनिया में गिरने न दूंगा कहीं बम
आगे ही आगे बढ़ाऊंगा कदम


https://dc.kavyasaanj.com/2021/08/nanha-munna-rahi-hu-patriotic-song.html

गीतकार : शकिल बदायुनी








Thursday 5 August 2021

तलाश

तलाश जो है चल रही,

मैं ढूंढता हूँ दरबदर, मैं ढूंढता हूँ हमसफ़र,

कोई रहगुज़र कोई राहबर।

ये तलाश जो है चलती रहती, ढूंढता हूँ दरबदर, मैं ढूंढता हूँ रहगुज़र

कोई राहबर कोई हमसफ़र।

चाहता हूँ

ये चाहता हूँ ज़िन्दगी में कोई ऐसा शख्स हो

मुझ जैसी बातें करे, वो मेरा ही अक्स हो।

कि कह दूं जिस से सारी बातें रह गयी जो अनकही

कहते वक़्त ये ना सोचूँ कि क्या गलत, क्या सही।

कि मैं लिखता हूँ तो लिखने का हुनर उसे मालूम हो

मेरे हर लिखे अल्फ़ाज़ का असर उसे मालूम हो।

कि काश के वो हमसफर वो रहबर के जैसा हो

काश के कोई ऐसा मिले

काश के कोई ऐसा हो।

ये ज़िन्दगी, ये ज़िन्दगी कट रही थी काश के सहारे

ढूंढ के जा पहुंचा एक झील के किनारे।

कि बेबसी का बोझ लिए अश्क छलका आँखों से,

मैं सहम गया वहां गूंजने वाली आहों से

क्योंकि वहाँ कोई था, कोई था वहाँ

जो मेरे साथ अपनी पलकें भिगो रहा था

वो और कोई नहीं मेरा साया था जो साथ मेरे रोया था।

तो उस शाम, उस महफ़िल में जब सिर्फ़ गुमसूमियत या तन्हाई थी

तब मुझसे गुफ़्तगू करने मेरी ही परछाई थी।

वो बड़ी देर तक मुझे घूरता रहा और फिर वो बड़े लंबे दौर तक कहता रहा। और इसने कहा,

तेरे बेमंज़िले अगाज़तों की हाँ वही मंज़िल हूँ मैं

मुझको ढूंढता दरबदर, तुझमे ही शामिल हूँ मैं।

कि मेरा पूछता है जाके दुनिया वालों से

तुझमे ही तो रहता हूँ जाने कितने सालों से।

कि पहने जितने हैं मुखौटे उतार के तू फेंक दे

मैं तुझमे ही तो रहता हूँ तू आइनों में देख ले।

कि मुझको ही तेरे लिखने का हुनर मालूम है।

तेरे हर लिखे अल्फ़ाज़ का असर भी मालूम है।

तो खत्म हुआ,

तो खत्म हुआ किसी खास को ढूंढने के सिलसिला,

मैं उस शाम खुद को ही, खुद को ही जो जा मिला।

यानि कि, जिसकी आरज़ू जिसकी जुस्तुजू में था,

मुझे क्या कुछ न मिल गया जो खुद से रूबरू में था।

तो हर शाम की थी कोशिश,

ज़माने से की थी कोशिश

पर उस शाम की कोशिश कुछ खास थी,

ये जो बरसों की जद्दोजहद थी, ये और कुछ नहीं,

मुझे अपनी ही तलाश थी।

https://dc.kavyasaanj.com/2021/08/talash-hindi-kavita-by-rakesh-tiwari.html

-- राकेश तिवारी 





Sunday 1 August 2021

बरसों पुराना दोस्त मिला

बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे कोई ग़ैर हो

देखा! रुका! झिझक के कहा 'तुम उमैर हो?'
https://dc.kavyasaanj.com/2021/08/barso-purana-dost-shayri.html

- उमैर नज़्मी 
https://dc.kavyasaanj.com/2021/08/barso-purana-dost-shayri.html






Sunday 18 July 2021

समुद्र बिलोरी ऐना

समुद्र बिलोरी ऐना

सृष्टीला पाचवा महिना

वाकले माडांचे माथे

चांदणे पाण्यात न्हाते

आकाशदिवे लावित आली कार्तिक नवमीची रैना

समुद्र बिलोरी ऐना…

कटीस अंजिरी नेसू

गालात मिश्‍कील हासू

मयुरपंखी मधुरडंखी उडाली गोरटी मैना

समुद्र बिलोरी ऐना…

लावण्य जातसे ऊतू

वायाच चालला ऋतू

अशाच वेळी गेलिस का तू करुन जीवाची दैना

समुद्र बिलोरी ऐना…

https://dc.kavyasaanj.com/2021/07/samudra-bilori-aina-by-borkar.html

कवी - बा. भ. बोरकर





Friday 16 July 2021

Alone Again

Completely surrounded

A constant din

Inside, feeling alone again

I can never go home again

Destined to carry another's sin

The emptiness echoed

Day after day

Pure pain I thought

Would never go away

Across the decades you thought of me

You longed for connection to set you free

My path crossed yours

Stars crossed and soared

Scars opened, revealing our damaged cores

A meeting of spirit, a meeting of minds

Never knowing a friendship so pure and so kind

Sudden understanding with no warning or sign

No longer alone, I'm yours and you're mine

https://dc.kavyasaanj.com/2021/07/alone-again-english-poem.html

- Sarah Hernandez





Tuesday 13 July 2021

तेरे साथ भी, तेरे बाद भी

तेरे साथ भी, तेरे बाद भी,

दिन होंगे , रातें भी होगी,

दीप जलेंगे, अंधेरा भी छटेगा,

सन्नाटा होगा, हवाएं भी बहेगी,

और झकझोरेगी हर शाखा तरू की,

समुंदर की लहरें भले डराएगी,

पर कश्ती फिर भी चलेगी,

हां बिन मंजिल, बिन साहिल बहेगी,

सिर्फ बहते रहेगी।

तेरा चेहरा तो होगा,

पर वो आइना ना होगा,

जिसमें तुझे सँवारते देखा करता था,

भीगे पलको में बेसुध कुछ ख़्वाब तो होंगे,

पर वो चुभेंगे और दर्द भी देंगे,

कई और होंठ होंगे,

पर उन होंठो में!

बहती हंसी की रस - धार ना होगी,

साथ कई होंगे,

फिर भी मन एकांत सा होगा,

बरसाते भी होगी,

पर भिंगे मिट्टी की खुशबू!

कितने बेस्वाद होंगे,

कल्पनाए तो होगी,

पर उनके पर कटे होंगे,

उड़ान तो होगा,

पर उसमें हौंसला ना होगा।

https://dc.kavyasaanj.com/2021/07/tere-sath-bhi-tere-baad-bhi-hindi-poem.html

कवी - उत्तम कुमार





Saturday 3 July 2021

हाल - ए - दिल

जबसे प्यार हुआ है तुमसे
हाल ए दिल कुछ ऐसा है
हम न रहे अब हमारें
खुद मे ही मशगुल रहते है

कई अरसोंसे  राह तकी थी
बस प्यार का ही खुमार छाया है
मांगा था तुम्हे खुदा से, अब
बडी शिद्दत से तुम्हे पाया है

दिल बनके नादान परिंदा
चारो ओर झुमे जा रहा है
तुम्हारी सांसो मे घुलनेके
पागल सपने सजा रहा है

बनके  तुम खुशबू इत्र की
रोम रोम मेहका रहे हो
भूलाके सारी दुनिया को
मेरे रुबरू अब हो रहे हो

लौट आओ जान ए बहार
आँखो मे बस तेरा इंतजार है
एकदुसरे में खोने के लिए 
अब दिल ए बेकारार है

तकदिर है हमारी जो
तुम पास हमारे हो
एक तेरे प्यार के सिवा
रुह भी हमारी ना हो

https://dc.kavyasaanj.com/2021/07/haal-e-dil-kavita-by-kaveri.html

कवयित्री - कावेरी डफळ




Tuesday 29 June 2021

नाका वरच्या रागाला (बडबडगीत)

मोठं मोठं डोळे करून
पाहतेस काय

नाका वरच्या रागाला
कारण काय
 
आणले होते फुगे आता
देऊ मी कोणाला 
https://dc.kavyasaanj.com/2021/06/nakavarchya-ragala-badbadgeet-by-kaveri.html
चॉकलेटची चव आता
कोण येणार चाखायला 

फुगलेले गाल पहा
आता जातील फुटून 

धावत माझी छकुली
https://dc.kavyasaanj.com/2021/06/nakavarchya-ragala-badbadgeet-by-kaveri.html
आली पहा उठून 


कवयित्री - कावेरी डफळ





Monday 28 June 2021

झांसी की रानी

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

https://dc.kavyasaanj.com/2021/06/jhansi-ki-raani-by-subhadrakumari.html
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
https://dc.kavyasaanj.com/2021/06/jhansi-ki-raani-by-subhadrakumari.html

- सुभद्राकुमारी चौहान






Monday 21 June 2021

दुखावलेला यार

शत्रूहूनही घातक असतो
दुखावलेला यार
त्याला आरपार
माहीत अस्तोय आपण
आईहून जास्त बापाहून जास्त

सहज क्रौर्याने
नक्षीदार मुठीची दातेरी सुरी
पोटात खुपसून गर्रकन फिरवतो तो
फिरवत राहतो
आतल्या आत आतल्या आत
आतड्याचा पीळ कापत
हजारो तुकडे करतो
धारदार यार

शत्रूवर पलट वार
करता येतो
याराकडे फक्त बघता येतं
दुखावलेल्या नजरेने

https://dc.kavyasaanj.com/2021/06/dukhavlela-yaar-kavita-mahajan.html

कवयित्री - कविता महाजन





Thursday 17 June 2021

विजेता

असतील तुझ्या समोर अनंत अडचणी 
मार्ग तुझा असेल अत्यंत खडतर
अपेक्षा जास्त पण यश मिळत नसेल
हसायचंय पण रडावे लागत असेल 

तुझे मन हजारो चिंतांनी ग्रासलेलं असेल
तेव्हा तू थोडा विसावा घे पण
माघार मात्र तू घेऊ नकोस,कारण
जीवन सदा चढ उतारांनीच भरलेले असेल

मनापासून परिश्रम घेत असशील
तर कधी अपयशही येईल
पण तू प्रयत्न करायचे सोडले नाहीस 
तर विजय मात्र तुझाच होईल

समोरच्याआव्हानांसाठी सदैव सज्ज रहा 
आणि खंबीर मनाने त्यांना सामोरे जा
ऐरण झालास तर घाव सोसत जा आणि 
हातोडा झालास तर घाल घालत रहा.

आज तुझी प्रगती का नाही 
याचा विचार करत बसू नकोस
प्रतिकुल परिस्थितीशी झगडत रहाशील
तर बघ उद्याचा विजेता फक्त तूच असशील

https://dc.kavyasaanj.com/2021/06/vijeta-poem-by-kaveri.html

कवयित्री - कावेरी डफळ





Thursday 10 June 2021

ती चांदरात

पिठुर चांदण्याने सारे
वातावरण भारून गेले
शब्द झाले मुके अन्
प्रेम मात्र न्हाऊन निघाले.

अंधाराची शाल पांघरून
सागरही निपचित झाला सगळा
पायाखालच्या वाळूचा 
आज स्पर्श भासे वेगळा.

चांदण्याने न्हाऊन निघालेली
भुमाताही मृदुमुलायम झाली
ही मादक चांदरात आता
स्वप्नांची सौदागर बनून आली.

रुपेरी चांदण्यात अनेक
आठवणी दाटू लागल्या
चांदण्यांच्या गाण्यांच्या
पुरात सगळ्या मग लोटल्या

उधळलेले ताऱ्यांचे हे सौंदर्य
पाहून मनही आज श्रीमंत झाले
चांदण्यांच्या चमकदार किरणांनी
सागरजलही चांदीच्या रसात न्हाले.

https://dc.kavyasaanj.com/2021/06/ti-chaand-raat-by-kaveri.html

कवयित्री - कावेरी डफळ





Sunday 6 June 2021

सुवर्णदुर्ग

करूनी मुजरा माझ्या राजाला , शिवाजी राजला... शिवाजी राजाला...
करूनी मुजरा माझ्या राजाला
जिजाऊच्या तेजस्वी पुत्राला,
ज्याने पावन केले भारतभूमीला,
नमन मराठ्याच्या दुधारी तलवारीला हो..जी जी जी...(२)

राजाने आरमार थोर उभारिले,
जलदुर्गही पारखून बांधिले,
रत्नागिरी हर्णे बंदरावर 
दुर्ग साकारला भव्य - बलवान,
दुर्ग साकारला भव्य - बलवान,
राजांनी नाव दिधले सुवर्णदुर्ग हो जी जी जी...(२)

उत्तराभिमुख भव्य प्रवेशद्वार,
दक्षिणेकडे भक्कम कोठार,
पायरीवर कोरली प्रतिमा कासवाची,
तटबंदीवर मूर्ती शोभे हनुमानाची,
मूर्ती शोभे हनुमानाची,
जिथे रचला आरमाराचा इतिहास हो जी जी जी...(२)

महाद्वारास नक्षीदार कमान,
दगडी चौथरे वाढवी राजवाड्याची शान,
पश्चिमेस एक चोरदरवाजा खास,
त्याची वाट जाऊनी मिळे समुद्रास,
त्याची वाट जाऊनी मिळे समुद्रास,
उभारिला फिरंग्यांचा कर्दनकाळ हो जी जी जी...(२)

खडकात तलाव खोदलेले,
सात विहिरी मोहक भासे,
दुर्गावर मंदिर एक ना दिसे,
दुर्गावर मंदिर एक ना दिसे,
देवड्यांच्या बाजूने पायऱ्यांची रांग हो जी जी जी...(२)

तुकोजी आंग्रे पराक्रमी सरदार,
कान्होजी पुत्र तयाचा मुत्सद्दी वीर,
युद्धात फितुर होता किल्लेदार,
कान्होजींनी पेलला सुवर्णदुर्गाचा हो भार...
पेलला सुवर्णदुर्गाचा हो भार....
हाती घेतली आरमाराची कमान हो जी जी जी...(२)

पाहुनी पराक्रम कान्होजींचा,
' सरखेल ' किताब महाराणी ताराबाईंनी हो दिधला,
असा सुवर्णदुर्ग तो महान,
असा सुवर्णदुर्ग तो महान,
ज्याने घडवला स्वराज्याचा सुवर्णकाळ हो जी जी जी...(२)

https://dc.kavyasaanj.com/2021/06/suvarnadurg-povada-by-kaveri.html

कवयित्री - कावेरी डफळ

‘सुवर्णदुर्ग’ हा एक असा किल्ला आहे की ज्याच्यामुळे समुद्री तटावरुन आरमाराच्या जोरावर आपले स्वराज्य शिवरायांना सुरक्षित ठेवता आले होते. इ.स.वी.सन 1660 मध्ये हा किल्ला स्वराज्यात आला होता. या किल्ल्याचे वर्णन कवयित्री कावेरी डफळ यांनी पोवाड्यातून सुंदररित्या केले आहे






Sunday 23 May 2021

प्रेम आणि मरण


कुठल्याशा जागी देख ।
मैदान मोकळे एक ॥ पसरलें ॥
वृक्ष थोर एकच त्यांत ।
वाढला पुर्या जोमांत ॥ सारखा ॥
चहुंकडेच त्याच्या भंवतें ।
गुडघाभर सारें जग तें ॥ तेथलें ॥
झुडुपेंच खुरट इवलालीं ।
मातींत पसरल्या वेली ॥ माजती ॥
रोज ती । कैक उपजती । आणखी मरती ।
नाहि त्या गणती । दादही अशांची नव्हती ॥ त्याप्रती ॥

त्यासाठी मैदानांत ।
किति वेली तळमळतात ॥ सारख्या ॥
परि कर्माचे विंदान
कांही तरि असतें आन ॥ चहुंकडे ॥
कोणत्या मुहूर्तावरतीं ।
मेघांत वीज लखलखती ॥ नाचली ॥
त्या क्षणी । त्याचिया मनीं । तरंगति झणीं।
गोड तरि जहरी । प्रीतीच्या नवथर लहरी ॥ न कळतां ॥

तो ठसा मनावर ठसला ।
तो घाव जिव्हारीं बसला ॥ प्रीतिचा ॥
वेड पुरें लावी त्याला ।
गगनांतिल चंचल बाला ॥ त्यावरी ॥
जतिधर्म त्याचा सुटला ।
संबंध जगाशी तुटला ॥ त्यापुढें ॥
आशाहि । कोठली कांहि । राहिली नाहिं ।
सारखा जाळी । ध्यास त्यास तीन्ही काळीं ॥ एक तो ॥

मुसळधार पाउस पडला ।
तरि कधी टवटवी त्याला ॥ येइना ॥
जरि वारा करि थैमान ।
तरि हले न याचें पान ॥ एकही ॥
कैकदा कळयाही आल्या ।
नच फुलल्या कांही केल्या ॥ परि कधी ॥
तो योग । खरा हठयोग । प्रीतिचा रोग ।
लागला ज्याला । लागतें जगावें त्याला ॥ हें असें ! ॥

ही त्याची स्थिती पाहुनिया ।
ती दीड वीतीची दुनिया ॥ बडबडे ॥
कुणी हंसे कुणी करि कींव।
तडफडे कुणाचा जीव ॥ त्यास्तव ॥
कुणि दयाहि त्यावरि करिती ।
स्वर्गस्थ देव मनिं हंसती ॥ त्याप्रती ॥
निंदिनी । कुणी त्याप्रती ॥ नजर चुकविती ।
भीतिही कोणी । जड जगास अवजड गोणी ॥ होइ तो ॥

इष्काचा जहरी प्याला ।
नशिबाला ज्याच्या आला ॥ हा असा ॥
टोंकाविण चालू मरणें ।
तें त्याचें होतें जगणें ॥ सारखें ॥
हृदयाला फसवुनि हंसणें ।
जीवाला न कळत जगणें ॥ वरिवरी ॥
पटत ना । जगीं जगपणा । त्याचिया मना ॥
भाव त्या टाकी । देवांतुनि दगडचि बाकी ॥ राहतो ॥

यापरी तपश्चर्या ती ।
किति झाली न तिला गणती ॥ राहिली ॥
इंद्राच्या इंद्रपदाला ।
थरकांप सारखा सुटला ॥ भीतिनें ॥
आश्चर्ये ऋषिगण दाटे ।
ध्रुवबाळा मत्सर वाटे ॥ पाहुनी ॥
तों स्वतां । तपोदेवता । काल संपतां ।
प्रकटली अंती । ''वरं ब्रूहि'' झाली वदती ॥ त्याप्रती ॥

''तप फळास आलें पाही ।
माग जें मनोगत कांही ॥ यावरी ॥
हो चिरंजीव लवलाही ।
कल्पवृक्ष दुसरा होई ॥ नंदनी ॥
प्रळयींच्या वटवृक्षाचें ।
तुज मिळेल पद भाग्याचें ॥ तरुवसा ॥''
तो वदे '' देवि सर्व-दे । हेंच एक दे -
भेटवी मजला । जीविंच्या जिवाची बाला ॥ एकदा ॥''

सांगती हिताच्या गोष्टी ।
देवांच्या तेतिस कोटी ॥ मग तया ॥
'' ही भलती आशा बा रे ॥
सोडि तूं वेड हें सारें ॥ घातकी ॥
स्पर्शासह मरणहि आणी ।
ती तुझ्या जिवाची राणी ॥ त्या क्षणी ॥
ही अशी शुध्द राक्षसी । काय मागसी ।
माग तूं कांही । लाभलें कुणाला नाहीं ॥ जें कधी ॥''

तो हंसे जरा उपहासें ।
मग सर्वेच बदला खासें । त्यांप्रती ॥
'' निष्प्रेम चिरंजीवन तें।
जगिं दगडालाहि मिळतें ॥ धिक तया ॥
क्षण एक पुरे प्रेमाचा ।
वर्षाव पडो मरणांचा । मग पुढें ॥''
निग्रहे । वदुनि शब्द हे । अधिक आग्रहें ।
जीव आवरुनी । ध्यानस्थ बैसला फिरुनी ॥ वृक्ष तो ॥

तो निग्रह पाहुनि त्याचा ॥
निरुपाय सर्व देवांचा ॥ जाहला ॥
मग त्याला भेटायाला ।
गगनांतील चंचल बाला ॥ धाडिली ॥
धांवली उताविळ होत ।
प्रीतीची जळती ज्योत ॥ त्याकडे ॥
कडकडे । त्यावरी पडे स्पर्श जों घडे ।
वृक्ष उन्मळला । दुभंगून खाली पडला ॥ त्या क्षणीं ॥

दुभंगून खालीं पडला ।
परि पडतां पडतां हंसला ॥एकदा ॥
हर्षाच्या येउनि लहरी ।
फडफडुनी पानें सारी ॥ हांसली ॥
त्या कळया सर्वही फुलल्या ॥
खुलल्या त्या कायम खुलल्या ॥ अजुनिही ॥
तो योग । खरा हठयोग । प्रीतीचा रोग ।
लागला ज्याला । लाभतें मरणही त्याला ॥ हें असें ॥

https://dc.kavyasaanj.com/2021/05/prem-ani-maran-govindagraj.html

कवी - गोविंदाग्रज 





Wednesday 19 May 2021

त्रिधा राधा

आभाळ निळे तो हरि,
ती एक चांदणी राधा,
बावरी,
युगानुयुगीची मनबाधा

विस्तीर्ण भुई गोविंद,
क्षेत्र साळीचे राधा,
स्वच्छन्द,*(संसिद्ध)
युगानुयुगीची प्रियंवदा

जलवाहिनी निश्चल कृष्ण,
वन झुकले काठी राधा,
विप्रश्न,
युगानुयुगीची चिरतंद्रा

https://dc.kavyasaanj.com/

कवी - पु. शि. रेगे (पुरुषोत्तम शिवराम रेगे)


* - ‘गंधरेखा’ या संग्रहात ही कविता पुन्हा घेताना कवी रेगे यांनी ‘स्वच्छन्द’च्या जागी ‘संसिद्ध’ हा शब्द घातला आहे.





Monday 17 May 2021

विझलो आज जरी मी

विझलो आज जरी मी,

हा माझा अंत नाही…..

पेटेन उद्या नव्याने,

हे सामर्थ्य नाशवंत नाही ||

छाटले जरी पंख माझे,

पुन्हा उडेल मी.

अडवू शकेल मला,

अशी अजून भिंत नाही…

माझी झोपडी जाळण्याचे,

केलेत कैक कावे….

जळेल झोपडी अशी,

आग ती ज्वलंत नाही….

रोखण्यास आग माझी,

वादळे होती अतुर..

डोळ्यात जरी गेली धूळ,

थांबण्यास उसंत नाही…

येतील वादळे,खेटेल तुफान,

तरी वाट चालतो….

अडथळ्यांना भिऊन अडखळने,

पावलांना पसंत नाही….

https://dc.kavyasaanj.com/2021/05/vijhalo-aaj-jari-mi-suresh-bhat.html

कवी - सुरेश भट 





Tuesday 4 May 2021

सांग देवा पुन्हा कशी सुरुवात करू

कसा आणि कुठे कुठे
आता मी पुरा पडू             
सांग देवा पुन्हा कशी 
सुरुवात करू

सम्राज्य हे माझे सारे
एका क्षणात उध्वस्त झाले
शून्यातून उभारलेले सारे
पुन्हा शून्यातच मिळाले.
सांग देवा पुन्हा कशी सुरुवात करू...

सुखात मागे पुढे फिरणारे
आता मला दिसेनासे झाले.
पैसा गेल्यावर माझेच 
सगे मला सोडून गेले
सांग देवा पुन्हा कशी सुरुवात करू...

संपत्ती असताना माणसांची
सगळी वर्दळ असते
माणसांची सच्ची नियत फक्त
खरी वेळ आल्यावरच कळते
सांग देवा पुन्हा कशी सुरुवात करू...

निंदकांचीच आता 
सगळी गर्दी आहे
उपाय सूचन वेगळच पण 
चिंतेचीच सदा वर्दी आहे.
सांग देवा पुन्हा कशी सुरुवात करू...

आज मला समजले नुसता पैसा
 गोळा करून काही होता नाही
पडत्या काळात आपल्या 
पाठीशी खंबीरपणे उभी राहतील
अशी माणसे जोडता आली पाहिजे...

https://dc.kavyasaanj.com/2021/05/saang-deva-by-kaveri.html

कवयित्री - कावेरी डफळ 





Friday 30 April 2021

त्या बेभान क्षणी


त्या बेभान क्षणी
मन माझे हेलावले
पाहता उधाण लाटांचे
नयन माझे स्थिरावले

चित्कार ऐकता लाटांचा
धडधडू लागले काळीजही
वादळाला सोबत द्याया
कोसळू लागला वरुणराजही

नाव आता हेलकाऊन
दोन बाजू झुकू लागली
वल्हवून सारखे हातातून
काठीही खाली पडू लागली

https://dc.kavyasaanj.com/2021/04/tya-bebhan-kshani-by-kaveri.html
लहान माझी नाव होती
तिलाही आता तग धरवेना
किनारा जवळ असुनही
पैलतीरी जाता येईना

लाटांची एक धडक बसता
नावेला जलसमाधी  झाली
नाकातोंडात पाणी जाता
मृत्युशय्या दिसू लागली

धीर न खचता धैर्याने
मी पोहू लागले
त्या दर्याला मागे सोडून
किनारी जाऊ लागले

पोहचता किनारी माझ्या
जीवात जीव आला
जवळून भयानक वाटणारा
सागर मनाला मोहऊन गेला

https://dc.kavyasaanj.com/2021/04/tya-bebhan-kshani-by-kaveri.html

कवयित्री - कावेरी डफळ





Friday 16 April 2021

एकुलते एक झाड

आड रानाच्या त्या माळावरती,
एकुलते एक ते झाड होते,
वाऱ्यासवे डुलत होते,
हिरवळीसंगे बोलत होते

फांदो फांदी बहरत होते,
पानो पानी सळसळत होते,
डौलदार ते सुंदर तरू,
दिमाखात डोलत होते

ऋतू सारे बदलत गेले,
तसे झाड मोहरू लागले,
फुला फळांनी झाड आता,
आनंदाने झुलू लागले

दिवसामागून दिवस सरले,
उदासीचे मेघ दाटून आले,
डोळ्यातून अश्रू झरावे तसे,
पानंपान गळू लागले

https://dc.kavyasaanj.com/2021/04/ekulte-ek-jhaad-by-kaveri.html
(Pic Credit: Mahesh Mule)

शांत झाला वाराही,
अदृश्य झाली हिरवळही, 
उजाड माळरानावर आता,
विद्रूप दिसू लागले झाडही

दुःखाच्या हिंदोळ्यावर बसले तरी,
ताठ मानेने ते उभे होते,
रवितेजाची आग सोसत ,
सुकाळाची वाट ते पाहत होते

ठाऊक होते त्यालाही,
काळ असाच थांबत नाही,
दुःख सोसल्यावर मात्र,
सुख आल्याशिवाय राहत नाही

https://dc.kavyasaanj.com/2021/04/ekulte-ek-jhaad-by-kaveri.html

कवयित्री - कावेरी डफळ





Wednesday 14 April 2021

घराचे घरपण

घरं दिसायला असतात
घरांसारखी
पण असतात
माणसांच्या तऱ्हांसारखी

काही घरांना असतात
माणसांचे चेहरे 
तर काही असतात
खोटे तर काही खरे

काही घरांना असतात
संस्कार रेषांचे उंबरठे
तर काहींना आपलेपणाचे 
खोटे मुखवटे

काही घरं असतात 
दाटीवाटीची
काही मोकळी 
तर काही आतल्या गाठीची 

काही घरं
कौलारू चंद्रमौळी  
तर काहींच्या छपरांना
चांदण्यांची जाळी 

काहींची सताड 
उघडी कवाडे
तर काही घरांना 
लोखंडी दारे

काही घरात खेळणारे 
मुक्त वारे  
तर काहींच्या 
वर सक्तीचे पहारे 

काही घरांना
असतात कान 
तर काहींच्या मनावर 
नको नको ते ताण

काही घरांची दारे 
असतात बंद तर 
काहींना असतात 
भलते सलते छंद
 
काही घरं चक्क
असतात फुटपाथवर 
तर काहींची आभाळे मात्र 
असतात फार दूरवर
 
घरांचे घरपण नसते
फक्त शेकडो माळ्यांमुळे
तर घराला घरपण येते
त्यातल्या मायेच्या माणसांमुळे 

https://dc.kavyasaanj.com/2021/04/gharache-gharpan-kaveri-dafal.html

कवयित्री - कावेरी डफळ 





Thursday 25 March 2021

दमलेल्या बाबाची कहाणी

कोमेजून निजलेली एक परी राणी,

उतरले तोंड, डोळा सुकलेले पाणी..

रोजचेच आहे सारे काही आज नाही

माफी कशी मागू पोरी मला तोंड नाही..

झोपेतच घेतो तुला आज मी कुशीत

निजतंच तरी पण येशील खुशीत

सांगायाची आहे माझ्या सानुल्या फुला

दमलेल्या बाबाची हि कहाणी तुला

ना ना ना ना नाऽऽऽऽऽऽऽऽ ना ना ना ना नाऽऽऽऽ


आट-पाट नगरात गर्दी होती भारी

घामाघूम राजा करी लोकलची वारी..

रोज सकाळीस राजा निघताना बोले

गोष्ट सांगायचे काल राहुनिया गेले

जमलेच नाही काल येणे मला जरी

आज परी येणार मी वेळेतच घरी

स्वप्नातल्या गावामध्ये मारू मग फेरी

खऱ्याखुऱ्या पारीसाठी गोष्टीतली परी..

बांधीन मी थकलेल्या हातांचा झुला

दमलेल्या बाबाची हि कहाणी तुला

ना ना ना ना नाऽऽऽऽऽऽऽऽ ना ना ना ना नाऽऽऽऽ


ऑफिसात उशिरा मी असतो बसून

भंडावले डोके गेले कामात बुडून

तास–तास जातो खाल मानेने निघून

एक-एक दिवा जातो हळूच विझून..

अशावेळी काय सांगू काय काय वाटे

आठवा सोबत पाणी डोळ्यातून दाटे..

वाटते कि उठुनिया तुझ्या पास यावे

तुझ्यासाठी मी पुन्हा लहानगे व्हावे..

उगाचच रुसावे नि भांडावे तुझ्याशी

चिमुकले खेळ काही मांडावे तुझ्याशी


उधळत खिदळत बोलशील काही

बघताना भान मला उरणार नाही..

हसूनिया उगाचच ओरडेल काही

दुरूनच आपल्याला बघणारी आई

तरी सुद्धा दोघे जण दंगा मांडू असा

क्षणा-क्षणावर ठेवू खोडकर ठसा

सांगायाची आहे माझ्या सानुल्या फुला

दमलेल्या बाबाची हि कहाणी तुला

ना ना ना ना नाऽऽऽऽऽऽऽऽ ना ना ना ना नाऽऽऽऽ


दमल्या पायाने जेव्हा येईल जांभई

मउ-मउ दुध भात भरवेल आई

गोष्ट ऐकायला मग येशील न अशी

सावरीच्या उशीहून मउ माझी कुशी..



कुशी माझी सांगत आहे ऐक बाळा काही

सदोदित जरी का मी तुझ्या पास नाही

जेऊ, खाऊ, न्हाऊ, माखू घालतो ना तुला

आई परी वेणी फणी करतो ना तुलाऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

जेऊ, माखू न्हाऊ, खाऊ घालतो न तुला

आई परी वेणी-फणी करतो ना तुला

तुझ्यासाठी आई परी बाबासुद्धा खुळा

तो हि कधी गुपचूप रडतो रे बाळा

सांगायाची आहे माझ्या सानुल्या फुला

दमलेल्या बाबाची या कहाणी तुला

ना ना ना ना नाऽऽऽऽऽऽऽऽ ना ना ना ना नाऽऽऽऽ (२)


बोल्क्यामध्ये लुक-लुक्लेला तुझा पहिला दात

आणि पहिल्यांदाच घेतलास जेव्हा तोंडी मउ भात

आई म्हणण्या आधी सुद्धा म्हणली होतीस बाबा

रांगत-रांगत घेतलास जेव्हा घराचा तू ताबा..

लुटू-लुटू उभं रहात टाकलंस पाउल पहिलं

दूरचं पहात राहिलो फक्त, जवळ पहायचंच राहिलं


असा गेलो आहे बाळा पुरा अडकून

हल्ली तुला झोपेतच पाहतो दुरून..

असा कसा बाबा देव लेकराला देतो

लवकर जातो आणि उशिराला येतो..

बालपण गेले तुझे गुज निसटून

उरे काय तुझ्या माझ्या ओंजळी मधून..



जरी येते ओठी तुझ्या माझ्यासाठी हसे

नजरेत तुझ्या काही अनोळखी दिसे

तुझ्या जगातून बाबा हरवेल का गं

मोठेपणी बाबा तुला आठवेल का गं..

सासुर्याला जाता-जाता उंबरठ्या मध्ये

बाबासाठी येईल का पाणी डोळ्यामध्ये….

ना ना ना ना नाऽऽऽऽऽऽऽऽ ना ना ना ना नाऽऽऽऽ

ना ना ना ना नाऽऽऽऽऽऽऽऽ ना ना ना ना नाऽऽऽऽ

 
https://dc.kavyasaanj.com/2021/03/aayushyawar-bolu-kahi-sandip-khare.html

कवी - संदीप खरे 



"दमलेल्या बाबाची कहाणी" हि संदीप खरे ह्यांच्या 'आयुष्यावर बोलू काही' ह्या मुसिक अल्बम मधून घेतली आहे. त्याची लिंक सोबत देत आहे :

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3.




Friday 5 March 2021

छोटेसे बहीण भाऊ

छोटेसे बहिण-भाऊ,
उद्याला मोठाले होऊ
उद्याच्या जगाला, उद्याच्या युगाला
नवीन आकार देऊ

https://dc.kavyasaanj.com/


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कवी — वसंत बापट





Monday 1 March 2021

पाऊले चालती पंढरीची वाट

पाऊले चालती पंढरीची वाट
सुखी संसाराची तोडूनिया गाठ

गांजुनिया भारी दुःख दारिद्र्याने
पडता रिकामे भाकरीचे ताट
पाऊले चालती … 

आप्त‍ इष्ट सारे सगेसोयरे ते
पाहुनिया सारे फिरविती पाठ
पाऊले चालती … 

घेता प्रसाद श्री विठ्ठलाचा
अशा दारिद्र्याचा व्हावा नायनाट
पाऊले चालती … 

मन शांत होता पुन्हा लागे ओढ
तस्सा मांडी गोड संसाराचा थाट
पाऊले चालती … 

https://dc.kavyasaanj.com/2021/03/paule-chalati-pandharichi-vaat.html

कवी - दत्ता पाटील





Monday 25 January 2021

सारे जहाँ से अच्छा

सारे जहाँ से अच्छा,
हिन्दोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी,
यह गुलिसताँ हमारा।।

ग़ुरबत में हों अगर हम,
रहता है दिल वतन में।
समझो वहीं हमें भी,
दिल हो जहाँ हमारा।। सारे...

परबत वो सबसे ऊँचा,
हमसाया आसमाँ का।
वो संतरी हमारा,
वो पासबाँ हमारा।। सारे...

गोदी में खेलती हैं,
उसकी हज़ारों नदियाँ।
https://dc.kavyasaanj.com/2021/01/saare-jahan-se-achaa.html
(Pic credit: Mahesh Mule)
गुलशन है जिनके दम से,
रश्क-ए-जिनाँ हमारा।। सारे....

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा!
वो दिन है याद तुझको।
उतरा तेरे किनारे,
जब कारवाँ हमारा।। सारे...

मज़हब नहीं सिखाता,
आपस में बैर रखना।
हिन्दी हैं हम वतन हैं,
हिन्दोस्ताँ हमारा।। सारे...

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा,
सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी,
नाम-ओ-निशाँ हमारा।। सारे...

कुछ बात है कि हस्ती,
मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन,
दौर-ए-ज़माँ हमारा।। सारे...

'इक़बाल' कोई महरम,
अपना नहीं जहाँ में।
मालूम क्या किसी को,
दर्द-ए-निहाँ हमारा।। सारे...

https://dc.kavyasaanj.com/2021/01/saare-jahan-se-achaa.html

कवी - इक़बाल (मुहम्मद इक़बाल मसऊदी)





Tuesday 5 January 2021

ओवणी

ओठांत कुठवर चिरडाव्यात 
अंतरीच्या हाका 
कवितेच्या सुईने किती
घालावा टाका 

जखम चिघळते 
घातलेल्याच टाक्यातून 
आकाश कोण ओवतं 
सुईच्या नाकातून 

https://dc.kavyasaanj.com/2021/01/ovani-unhachya-katavirudha-by-nagraj-manjule.html

कवी  - नागराज मंजुळे
(कवितासंग्रह : उन्हाच्या कटाविरुद्धआटपाट प्रकाशन  ) 



"ओवणी" हि नागराज मंजुळे ह्यांच्या 'उन्हाच्या कटाविरुद्ध' ह्या पुस्तकातून घेतली आहे. त्या पुस्तकाची लिंक सोबत देत आहे :

उन्हाच्या कटाविरुद्ध on Amazon.in
https://amzn.to/3ncTjct



Saturday 2 January 2021

वांग्याच्या भाजीचा रस्सा न गपगप शिरा

ऐकून घ्या बे पोट्टेहो
साऱ्या पाऊणे मंडळींची जेव्वाची व्यवस्था मागच्या मैदानात केली हाय .
अन हवं… वांग्याची भाजी बी जेवजा अन गपगप शिरा बी दाबजा
दाबजा…..दाबजा
अन हवं…
दाबजा शिरा भी दाबजा…

ताटात वाढला कांदा न कापला खीरा रे
ताटात वाढला कांदा न कापला खीरा रे
आलू वांग्याच्या भाजीचा रस्सा न गपगप शिरा रे
आलू वांग्याच्या भाजीचा रस्सा न गपगप शिरा रे

अरे वो बबल्या अबे लेका वांग्याची भाजी वाढ न बे बाप्पू ले…

आलू वांग्याची भाजी सुहानी ईदर्भाची ही जनता दिवानी…
आलू वांग्याची भाजी सुहानी ईदर्भाची ही जनता दिवानी
भाजीच्या संग रोडगा भारी हिरव्या मिरच्याचा ठेचा अंगारी

पेवाले देल्लं न ताक न ताकात जिरा रे
पेवाले देल्लं न ताक न ताकात जिरा रे
आलू वांग्याच्या भाजीचा रस्सा न गपगप शिरा रे
आलू वांग्याच्या भाजीचा रस्सा न गपगप शिरा रे

अरे इथं बी खाईन घरी बी नेईन घरचैयले जेवाले घेऊन येईन
इथं बी खाईन घरी बी नेईन घरचैयले जेवाले घेऊन येईन
नेवाले डब्बा म्या आणला मोठाला झोरा रे
नेवाले डब्बा म्या आणला मोठाला झोरा रे

आलू वांग्याच्या भाजीचा रस्सा न गपगप शिरा रे
आलू वांग्याच्या भाजीचा रस्सा न गपगप शिरा रे

ताटात वाढला कांदा न कापला खीरा रे
ताटात वाढला कांदा न कापला खीरा रे
आलू वांग्याच्या…
आलू वांग्याच्या…
आलू वांग्याच्या भाजीचा रस्सा न गपगप शिरा रे
आलू वांग्याच्या भाजीचा रस्सा न गपगप शिरा रे
आलू वांग्याच्या भाजीचा रस्सा न गपगप शिरा रे
आलू वांग्याच्या भाजीचा रस्सा न गपगप शिरा रे

च्या बईन भल्ल मस्त जेवण झाल राजा !

https://dc.kavyasaanj.com/2021/01/vangyachi-bhaji-an-gap-gap-shira.html/

कवी  - रुपेश सरातकर (YFP official song)