तेरे साथ भी, तेरे बाद भी,
दिन होंगे , रातें भी होगी,
दीप जलेंगे, अंधेरा भी छटेगा,
सन्नाटा होगा, हवाएं भी बहेगी,
और झकझोरेगी हर शाखा तरू की,
समुंदर की लहरें भले डराएगी,
पर कश्ती फिर भी चलेगी,
हां बिन मंजिल, बिन साहिल बहेगी,
सिर्फ बहते रहेगी।
तेरा चेहरा तो होगा,
पर वो आइना ना होगा,
जिसमें तुझे सँवारते देखा करता था,
भीगे पलको में बेसुध कुछ ख़्वाब तो होंगे,
पर वो चुभेंगे और दर्द भी देंगे,
कई और होंठ होंगे,
पर उन होंठो में!
बहती हंसी की रस - धार ना होगी,
साथ कई होंगे,
फिर भी मन एकांत सा होगा,
बरसाते भी होगी,
पर भिंगे मिट्टी की खुशबू!
कितने बेस्वाद होंगे,
कल्पनाए तो होगी,
पर उनके पर कटे होंगे,
उड़ान तो होगा,
पर उसमें हौंसला ना होगा।
कवी - उत्तम कुमार