आज इस शहर में अपने ही अजनबी हो गये
जो मिलकर हर प्रभात हर खबर दिया करते थे
कहाँ खो गये वो जो हर वक्त साथ दिया करते थे
कभी ये शहर भी छोटा सा मकान लगता था
आज एक मकान ही पूरा शहर लगता है
आज इस शहर में अपने ही अजनबी हो गये
सोचता हूँ कभी कभी उस वक्त को छीन लो
जिस वक्त में थे सभी साथ अपने
पर वक्त के सम्राट के हाथ में भी नहीं
कि खोये पल वापिस कर दें
ख्वाब में ही सही वो पल अब भी मै जी लेता हूँ
आज इस शहर में अपने ही अजनबी हो गये
आज ढूंढता हूँ उन्हीं गलियों में
जहाँ कभी हर वक़्त गुजारा करते थे
आज ये शहर ही किसी और का हो गया
क्योंकि ये दौर किसी और का हो गया
जिसमें कभी अपने यार हुआ करते थे
आज इस शहर में अपने ही अजनबी हो गये
कवी - भवानी प्रसाद लोधी
जो मिलकर हर प्रभात हर खबर दिया करते थे
कहाँ खो गये वो जो हर वक्त साथ दिया करते थे
कभी ये शहर भी छोटा सा मकान लगता था
आज एक मकान ही पूरा शहर लगता है
आज इस शहर में अपने ही अजनबी हो गये
सोचता हूँ कभी कभी उस वक्त को छीन लो
जिस वक्त में थे सभी साथ अपने
पर वक्त के सम्राट के हाथ में भी नहीं
कि खोये पल वापिस कर दें
ख्वाब में ही सही वो पल अब भी मै जी लेता हूँ
आज इस शहर में अपने ही अजनबी हो गये
आज ढूंढता हूँ उन्हीं गलियों में
जहाँ कभी हर वक़्त गुजारा करते थे
आज ये शहर ही किसी और का हो गया
क्योंकि ये दौर किसी और का हो गया
जिसमें कभी अपने यार हुआ करते थे
आज इस शहर में अपने ही अजनबी हो गये
कवी - भवानी प्रसाद लोधी
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