काहे आग लगाए फिरता
अंदर जो बसता है सांई
बांझ नज़र से बीज तू बोए
दुश्मन दुनिया लहु बियाही
धोखे से ही हुआ जो पैदा
और बढ़ा धोखा ही देकर
धोखा सिर पर मुकुट जड़ा तो
अंधा राजा मूढ़ सिपाही
वार करे सो वार मिलेगा
"कुर्सी" को इतवार मिलेगा
देखनवाला चैन से बैठा
तूने ही सब सुनि सुनाई
तेरी चादर तेरी रोटी
मां तेरी हर कोई बेटी
तेरा शक है कर्म की बाधा
तेरी शर्म ही तेरी लुगाई
जितना उलझा उतना भागा
तू धागा तुझे दिखे ना तागा
छिपा के मुंह जो बुनतर बैठा
तुहि उधेड़े तेरी बुनाई
पढ़ लिख कर तू ज्ञान बनेगा
चला जो भीतर ध्यान बनेगा
आप मिटे और जात मिटे तो
कण कण प्रेम का दिए दिखाई
– जितेंद्र शकुंतला जोशी
(14 Feb 2024)
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