Sunday, 18 July 2021

समुद्र बिलोरी ऐना

समुद्र बिलोरी ऐना

सृष्टीला पाचवा महिना

वाकले माडांचे माथे

चांदणे पाण्यात न्हाते

आकाशदिवे लावित आली कार्तिक नवमीची रैना

समुद्र बिलोरी ऐना…

कटीस अंजिरी नेसू

गालात मिश्‍कील हासू

मयुरपंखी मधुरडंखी उडाली गोरटी मैना

समुद्र बिलोरी ऐना…

लावण्य जातसे ऊतू

वायाच चालला ऋतू

अशाच वेळी गेलिस का तू करुन जीवाची दैना

समुद्र बिलोरी ऐना…

https://dc.kavyasaanj.com/2021/07/samudra-bilori-aina-by-borkar.html

कवी - बा. भ. बोरकर





Friday, 16 July 2021

Alone Again

Completely surrounded

A constant din

Inside, feeling alone again

I can never go home again

Destined to carry another's sin

The emptiness echoed

Day after day

Pure pain I thought

Would never go away

Across the decades you thought of me

You longed for connection to set you free

My path crossed yours

Stars crossed and soared

Scars opened, revealing our damaged cores

A meeting of spirit, a meeting of minds

Never knowing a friendship so pure and so kind

Sudden understanding with no warning or sign

No longer alone, I'm yours and you're mine

https://dc.kavyasaanj.com/2021/07/alone-again-english-poem.html

- Sarah Hernandez





Tuesday, 13 July 2021

तेरे साथ भी, तेरे बाद भी

तेरे साथ भी, तेरे बाद भी,

दिन होंगे , रातें भी होगी,

दीप जलेंगे, अंधेरा भी छटेगा,

सन्नाटा होगा, हवाएं भी बहेगी,

और झकझोरेगी हर शाखा तरू की,

समुंदर की लहरें भले डराएगी,

पर कश्ती फिर भी चलेगी,

हां बिन मंजिल, बिन साहिल बहेगी,

सिर्फ बहते रहेगी।

तेरा चेहरा तो होगा,

पर वो आइना ना होगा,

जिसमें तुझे सँवारते देखा करता था,

भीगे पलको में बेसुध कुछ ख़्वाब तो होंगे,

पर वो चुभेंगे और दर्द भी देंगे,

कई और होंठ होंगे,

पर उन होंठो में!

बहती हंसी की रस - धार ना होगी,

साथ कई होंगे,

फिर भी मन एकांत सा होगा,

बरसाते भी होगी,

पर भिंगे मिट्टी की खुशबू!

कितने बेस्वाद होंगे,

कल्पनाए तो होगी,

पर उनके पर कटे होंगे,

उड़ान तो होगा,

पर उसमें हौंसला ना होगा।

https://dc.kavyasaanj.com/2021/07/tere-sath-bhi-tere-baad-bhi-hindi-poem.html

कवी - उत्तम कुमार





Saturday, 3 July 2021

हाल - ए - दिल

जबसे प्यार हुआ है तुमसे
हाल ए दिल कुछ ऐसा है
हम न रहे अब हमारें
खुद मे ही मशगुल रहते है

कई अरसोंसे  राह तकी थी
बस प्यार का ही खुमार छाया है
मांगा था तुम्हे खुदा से, अब
बडी शिद्दत से तुम्हे पाया है

दिल बनके नादान परिंदा
चारो ओर झुमे जा रहा है
तुम्हारी सांसो मे घुलनेके
पागल सपने सजा रहा है

बनके  तुम खुशबू इत्र की
रोम रोम मेहका रहे हो
भूलाके सारी दुनिया को
मेरे रुबरू अब हो रहे हो

लौट आओ जान ए बहार
आँखो मे बस तेरा इंतजार है
एकदुसरे में खोने के लिए 
अब दिल ए बेकारार है

तकदिर है हमारी जो
तुम पास हमारे हो
एक तेरे प्यार के सिवा
रुह भी हमारी ना हो

https://dc.kavyasaanj.com/2021/07/haal-e-dil-kavita-by-kaveri.html

कवयित्री - कावेरी डफळ