मै लड़की हूं , मै नारी हूं,
मै लड़की हूं , मै नारी हूं,
हालातों से पग पग लड़ती,
पर मत समझो बेचारी हूं।
नज़रों से ही, एक्सरे सा स्कैन होती हूं,
आते जाते फब्तियों को भी सुनती हूं।
फिर भी सब कुछ अनदेखा अनसुना मै करती हूं।
पढ़ाई बंद होगी, ना बढ़ पाऊंगी आगे, बस इसी बात से ही डरती हूं।
मैं लड़की हूं, मैं नारी हूं।
कभी पहनावा ठीक नहीं, कभी चाल चलन खराब मेरा,
चरित्र पर मेरे उंगली उठती है,
गर पलट कर कुछ भी कहती हूं।
ऐसे सब आरोपों का मै निशाना बनती हूं।
मैं लड़की हूं, मैं नारी हूं।
निर्भया, आसिफा सरीखी हर लड़की की मै चीख - पुकार हूं।
इसीलिए शायद हर मां बाप पर होती अब मै भारी हूं।
तभी कोख़ में ही जाती मारी हूं,
पर इन सब से कब मै हारी हूं ।
मै लड़की हूं, मै नारी हूं।
घर में रहूं गर, तो सवाल, मै क्या करती हूं?
बाहर जाऊ और काम करूं ,
तो जवाब,क्या एहसान मै करती हूं।
जब तक चुप हूं, तब तक ही संस्कारी हूं।
अपने हक की बात करूं,तो कही जाती अहंकारी हूं।
मै लड़की हूं, मै नारी हूं।
पवित्र हो कर भी वैदेही सी,क्यों मै लांछन सहती हूं?
अहिल्या सी श्राप पा कर,पाषाण मै क्यों बनती हूं?
विश्वामित्र की तपस्या, क्यों मै ही भंग करती हूं?
क्या यही अंजाम मेरा,क्या इसी लिए मैं जन्मी हूं?
मै लड़की हूं , मै नारी हूं।
कविता,काव्य में मै ही कही जाती हूं,
हर ग़ज़ल, हर शायरी में मै इरशाद होती हूं?
विज्ञापन हो कोई ,तस्वीर में, मै ही क्यों छपती हूं?
इन सब का आकर्षण आखिर मै ही क्यों बनती हूं?
मै लड़की हूं, मै नारी हूं।
मै मां हूं, मै बेटी हूं, मै बहन हूं,
मित्र कहो या दोस्त, मानो तो संगी साथी हूं।
फिर भी ना जाने क्यों? सबको एक मौके सी मै दिखती हूं।
मै लड़की हूं, मै नारी हूं।
इन सब बातों से आगे बढ़कर, अब तो कभी खूब मै हंसती हूं।
पूछो तो क्यों हंसती हूं?
बस यही बचा था सुनने को, देश में बढ़ती बेकारी का मै कारण हूं।
क्योंकि, अपने पांव पर खड़े होने को नौकरी जो,करती हूं।
मै लड़की हूं , मै नारी हूं ।
हालातों से पग पग लड़ती , पर
मत समझो मै बेचारी हूं ।
कवयित्री - मंजू शर्मा