Tuesday, 29 June 2021

नाका वरच्या रागाला (बडबडगीत)

मोठं मोठं डोळे करून
पाहतेस काय

नाका वरच्या रागाला
कारण काय
 
आणले होते फुगे आता
देऊ मी कोणाला 
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चॉकलेटची चव आता
कोण येणार चाखायला 

फुगलेले गाल पहा
आता जातील फुटून 

धावत माझी छकुली
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आली पहा उठून 


कवयित्री - कावेरी डफळ





Monday, 28 June 2021

झांसी की रानी

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

https://dc.kavyasaanj.com/2021/06/jhansi-ki-raani-by-subhadrakumari.html
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
https://dc.kavyasaanj.com/2021/06/jhansi-ki-raani-by-subhadrakumari.html

- सुभद्राकुमारी चौहान






Monday, 21 June 2021

दुखावलेला यार

शत्रूहूनही घातक असतो
दुखावलेला यार
त्याला आरपार
माहीत अस्तोय आपण
आईहून जास्त बापाहून जास्त

सहज क्रौर्याने
नक्षीदार मुठीची दातेरी सुरी
पोटात खुपसून गर्रकन फिरवतो तो
फिरवत राहतो
आतल्या आत आतल्या आत
आतड्याचा पीळ कापत
हजारो तुकडे करतो
धारदार यार

शत्रूवर पलट वार
करता येतो
याराकडे फक्त बघता येतं
दुखावलेल्या नजरेने

https://dc.kavyasaanj.com/2021/06/dukhavlela-yaar-kavita-mahajan.html

कवयित्री - कविता महाजन





Thursday, 17 June 2021

विजेता

असतील तुझ्या समोर अनंत अडचणी 
मार्ग तुझा असेल अत्यंत खडतर
अपेक्षा जास्त पण यश मिळत नसेल
हसायचंय पण रडावे लागत असेल 

तुझे मन हजारो चिंतांनी ग्रासलेलं असेल
तेव्हा तू थोडा विसावा घे पण
माघार मात्र तू घेऊ नकोस,कारण
जीवन सदा चढ उतारांनीच भरलेले असेल

मनापासून परिश्रम घेत असशील
तर कधी अपयशही येईल
पण तू प्रयत्न करायचे सोडले नाहीस 
तर विजय मात्र तुझाच होईल

समोरच्याआव्हानांसाठी सदैव सज्ज रहा 
आणि खंबीर मनाने त्यांना सामोरे जा
ऐरण झालास तर घाव सोसत जा आणि 
हातोडा झालास तर घाल घालत रहा.

आज तुझी प्रगती का नाही 
याचा विचार करत बसू नकोस
प्रतिकुल परिस्थितीशी झगडत रहाशील
तर बघ उद्याचा विजेता फक्त तूच असशील

https://dc.kavyasaanj.com/2021/06/vijeta-poem-by-kaveri.html

कवयित्री - कावेरी डफळ





Thursday, 10 June 2021

ती चांदरात

पिठुर चांदण्याने सारे
वातावरण भारून गेले
शब्द झाले मुके अन्
प्रेम मात्र न्हाऊन निघाले.

अंधाराची शाल पांघरून
सागरही निपचित झाला सगळा
पायाखालच्या वाळूचा 
आज स्पर्श भासे वेगळा.

चांदण्याने न्हाऊन निघालेली
भुमाताही मृदुमुलायम झाली
ही मादक चांदरात आता
स्वप्नांची सौदागर बनून आली.

रुपेरी चांदण्यात अनेक
आठवणी दाटू लागल्या
चांदण्यांच्या गाण्यांच्या
पुरात सगळ्या मग लोटल्या

उधळलेले ताऱ्यांचे हे सौंदर्य
पाहून मनही आज श्रीमंत झाले
चांदण्यांच्या चमकदार किरणांनी
सागरजलही चांदीच्या रसात न्हाले.

https://dc.kavyasaanj.com/2021/06/ti-chaand-raat-by-kaveri.html

कवयित्री - कावेरी डफळ





Sunday, 6 June 2021

सुवर्णदुर्ग

करूनी मुजरा माझ्या राजाला , शिवाजी राजला... शिवाजी राजाला...
करूनी मुजरा माझ्या राजाला
जिजाऊच्या तेजस्वी पुत्राला,
ज्याने पावन केले भारतभूमीला,
नमन मराठ्याच्या दुधारी तलवारीला हो..जी जी जी...(२)

राजाने आरमार थोर उभारिले,
जलदुर्गही पारखून बांधिले,
रत्नागिरी हर्णे बंदरावर 
दुर्ग साकारला भव्य - बलवान,
दुर्ग साकारला भव्य - बलवान,
राजांनी नाव दिधले सुवर्णदुर्ग हो जी जी जी...(२)

उत्तराभिमुख भव्य प्रवेशद्वार,
दक्षिणेकडे भक्कम कोठार,
पायरीवर कोरली प्रतिमा कासवाची,
तटबंदीवर मूर्ती शोभे हनुमानाची,
मूर्ती शोभे हनुमानाची,
जिथे रचला आरमाराचा इतिहास हो जी जी जी...(२)

महाद्वारास नक्षीदार कमान,
दगडी चौथरे वाढवी राजवाड्याची शान,
पश्चिमेस एक चोरदरवाजा खास,
त्याची वाट जाऊनी मिळे समुद्रास,
त्याची वाट जाऊनी मिळे समुद्रास,
उभारिला फिरंग्यांचा कर्दनकाळ हो जी जी जी...(२)

खडकात तलाव खोदलेले,
सात विहिरी मोहक भासे,
दुर्गावर मंदिर एक ना दिसे,
दुर्गावर मंदिर एक ना दिसे,
देवड्यांच्या बाजूने पायऱ्यांची रांग हो जी जी जी...(२)

तुकोजी आंग्रे पराक्रमी सरदार,
कान्होजी पुत्र तयाचा मुत्सद्दी वीर,
युद्धात फितुर होता किल्लेदार,
कान्होजींनी पेलला सुवर्णदुर्गाचा हो भार...
पेलला सुवर्णदुर्गाचा हो भार....
हाती घेतली आरमाराची कमान हो जी जी जी...(२)

पाहुनी पराक्रम कान्होजींचा,
' सरखेल ' किताब महाराणी ताराबाईंनी हो दिधला,
असा सुवर्णदुर्ग तो महान,
असा सुवर्णदुर्ग तो महान,
ज्याने घडवला स्वराज्याचा सुवर्णकाळ हो जी जी जी...(२)

https://dc.kavyasaanj.com/2021/06/suvarnadurg-povada-by-kaveri.html

कवयित्री - कावेरी डफळ

‘सुवर्णदुर्ग’ हा एक असा किल्ला आहे की ज्याच्यामुळे समुद्री तटावरुन आरमाराच्या जोरावर आपले स्वराज्य शिवरायांना सुरक्षित ठेवता आले होते. इ.स.वी.सन 1660 मध्ये हा किल्ला स्वराज्यात आला होता. या किल्ल्याचे वर्णन कवयित्री कावेरी डफळ यांनी पोवाड्यातून सुंदररित्या केले आहे