जिंदगी इक सफ़र है नहीं और कुछ।
मौत के डर से डर है नहीं और कुछ।।
तेरी दौलत महल तेरा धोका है सब।
क़ब्र ही असली घर है नहीं और कुछ।।
प्यार से प्यार है प्यार ही बंदगी।
प्यार से बढ़के ज़र है नहीं और कुछ।।
नफ़रतों से हुआ कुछ न हासिल कभी।
ग़म इधर जो उधर है नहीं और कुछ।।
घटना घटती यहाँ जो वो छपती कहाँ।
सिर्फ झूठी ख़बर है नहीं और कुछ।।
बोलते सच जो थे क्यों वो ख़ामोश हैं।
ख़ौफ़ का ये असर है नहीं और कुछ।।
जो भी जाहिल को फ़ाज़िल कहेगा 'निज़ाम'।
अब उसी की कदर है नहीं और कुछ।।
कवी - निज़ाम फतेहपुरी
वास्तवाची जाणीव करून देणारी कविता.खूप छान
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